Friday, January 29, 2021

बन्द चौराहें

 यह कविता ऐसी सत्य घटना पर आधारित है जिसमे एक बूढा व्यक्ति काम की तलाश में भटक रहा है।लेकिन उसे काम नही मिलता तो उसकी क्या अवस्था है।आशा है ये मार्मिक रचना आप सब को पसन्द आएगी


किराने की दुकानों से आलू के गोदाम तक
भटकता है एक शख्स सुबह से शाम तक

जर्जर काया बोझ उठाने में असफल रहे
किन्तु उदर के ताप से रोज तन व्याकुल रहे

देखकर उसकी दशा कोई काम भी देता नही
आत्मसम्मान का धनी भीख वो लेता नही

दौड़ती गाड़ियों के बीच स्वयं से बोलता हुआ
अपने भाग्य को मन ही मन तोलता हुआ

रत्ती रत्ती स्वयं को मारने निकला है वो
कितने सहचर है किन्तु देखिये इकला है वो

मिशन सा है वो आज कुछ न कुछ अर्जित करे
स्वयं खाये और कुछ भगवान को अर्पित करे

भव्य होटल दमकती दुकाने आलिशान घरों के अहाते
अपनी भव्यता से अधिक उसकी लघुता को बताते

क्या करे कोई भी रास्ता नही दिखता
रक्त के बाजार में अब पसीना नही बिकता

पथ का पत्थर ही जाने लक्ष्यहीन होना है क्या
जब हाथ में पाई न हो तो कर्महीन होना है क्या

सहमता डरता सम्भलता आया ले आँखें सवाली
हाथ खाली जेब खाली और कदाचित पेट खाली

दो हाथ जोड़े माँगा काम उसने धरा पे बैठकर
कुछ नही है जाओ भाई लालाजी बोले ऐंठकर

आशा का खोना खोना कहो पारस का है
अनुमान से परे है जो हाल उसके अन्तस् का है

समय की गति से छला जाता है वो
निराशा का अनन्त बोझ ले चला जाता है वो

उन्नति की दमक छाया है खोखले उत्थान की
भूख तक न मिटा पाती है ये किसी इंसान की

कितनी करुण मर्मभेदी थी उसकी खामोश आहें
काश के कोई रास्ता दे देते उसे बन्द चौराहें।
                         ~सतीश रोहतगी

Sunday, January 10, 2021

हाल-ए-दिल


 


हाल-ए-दिल अब बतलाने से डरता हूँ

नाकाम रहे उस अफ़साने से डरता हूँ।

गाँवों के ये टूटे झोंपड़ और रठाने ही अच्छे

तेरे व्यस्त शहर के वीराने से डरता हूँ।

तू नही मिला तो गैरों से अय्याशी क्या

खुद की नजरों में गिर जाने से डरता हूँ।

तेरे जाने के बाद से वहशी हैं सन्नाटे

बचपन की तरहा घर में जाने से डरता हूँ।

इक इक कर खत सारे जला दिए हैं

गुजरी बातों के याद आने से डरता हूँ।

चाँद दिखेगा तो तेरा चेहरा याद आएगा

बस इसीलिए छत पर जाने से डरता हूँ।

खाब से पूछा गरीबो से नाराजी क्या

बोला आंसू बनकर बह जाने से डरता हूँ।

हाल-ए-दिल अब बतलाने से डरता हूँ।

नाकाम रहे उस अफ़साने से डरता हूँ।

                              ~सतीश रोहतगी


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