यह कविता ऐसी सत्य घटना पर आधारित है जिसमे एक बूढा व्यक्ति काम की तलाश में भटक रहा है।लेकिन उसे काम नही मिलता तो उसकी क्या अवस्था है।आशा है ये मार्मिक रचना आप सब को पसन्द आएगी
किराने की दुकानों से आलू के गोदाम तक
भटकता है एक शख्स सुबह से शाम तक
जर्जर काया बोझ उठाने में असफल रहे
किन्तु उदर के ताप से रोज तन व्याकुल रहे
देखकर उसकी दशा कोई काम भी देता नही
आत्मसम्मान का धनी भीख वो लेता नही
दौड़ती गाड़ियों के बीच स्वयं से बोलता हुआ
अपने भाग्य को मन ही मन तोलता हुआ
रत्ती रत्ती स्वयं को मारने निकला है वो
कितने सहचर है किन्तु देखिये इकला है वो
मिशन सा है वो आज कुछ न कुछ अर्जित करे
स्वयं खाये और कुछ भगवान को अर्पित करे
भव्य होटल दमकती दुकाने आलिशान घरों के अहाते
अपनी भव्यता से अधिक उसकी लघुता को बताते
क्या करे कोई भी रास्ता नही दिखता
रक्त के बाजार में अब पसीना नही बिकता
पथ का पत्थर ही जाने लक्ष्यहीन होना है क्या
जब हाथ में पाई न हो तो कर्महीन होना है क्या
सहमता डरता सम्भलता आया ले आँखें सवाली
हाथ खाली जेब खाली और कदाचित पेट खाली
दो हाथ जोड़े माँगा काम उसने धरा पे बैठकर
कुछ नही है जाओ भाई लालाजी बोले ऐंठकर
आशा का खोना खोना कहो पारस का है
अनुमान से परे है जो हाल उसके अन्तस् का है
समय की गति से छला जाता है वो
निराशा का अनन्त बोझ ले चला जाता है वो
उन्नति की दमक छाया है खोखले उत्थान की
भूख तक न मिटा पाती है ये किसी इंसान की
कितनी करुण मर्मभेदी थी उसकी खामोश आहें
काश के कोई रास्ता दे देते उसे बन्द चौराहें।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (31-01-2021) को "कंकड़ देते कष्ट" (चर्चा अंक- 3963) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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जी बहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत बहुत सुंदर
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 30 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी आभार
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी व भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteहोंसला बढ़ाने के लिए आपका हृदय से आभार
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteहोंसला बढ़ाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआप सभी महानुभावों से आग्रह है कि मेरे यूट्यूब चैनल satish rohatgi poetry पर जाकर subscribe करें और मेरा होंसला बढ़ाएं।धन्यवाद
ReplyDeleteजीवन में नौकरी के लिए जूझते व्यक्ति के मनोभावों का हृदय स्पर्शी सृजन..
ReplyDeleteमेरे भावों को मूल्य देने के लिए आभार
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteThank you
Deleteहृदयस्पर्शी, सुंदर प्रस्तुति माननीय।
ReplyDeleteसादर।
Thank you sadhu ji
Deleteहृदयस्पर्शी सृजन ।
ReplyDeleteधन्यवाद जी।ऐसे ही उत्साह बढ़ाते रहें
Deleteबहुत बढ़िया। दिल को छू लेने वाली कविता।
ReplyDeleteभावों को समझने के लिए आभार
Deleteप्रिय सतीश जी, मार्मिक काव्य चित्र रचा है आपने रोज़ की समस्याओं से जूझते आम आदमी का। लिखते रहिये। मेरी शुभकामनाएं।
Deleteकृपया अशुद्धियों पर जरूर ध्यान दें।
ReplyDeleteकृपया थोडा मार्गदर्शन कीजिये।
DeleteBahut achhe ji
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