Saturday, May 27, 2023

मैं समन्दर तो नही

 मैं समंदर तो नहीं कि दिल में उठे हर तूफान को सह लूँ


तुम जब हंसकर गैरों से मिलती हो तो मैं परेशान होता हूँ

                                     ~satishrohatgi



Saturday, May 20, 2023

बस यूँ ही

 सुलझाये कौन उसकी व्यथा


भरम के तारों में उलझा जिसका मन हो


कहाँ गए वो सपने आशाएं


सोचते थे ऐसा जीवन हो वैसा जीवन हो 

                 ~satish rohatgi


बस यूं ही

 होने को तो दुनिया में क्या क्या नहीं होता


अपना होकर भी तो कोई अपना नही होता


तजुर्बा नही होता अक्सर चोट खाये बगैर


बस यही सोचकर किसी से शिकवा नही होता

               ~सतीशरोहतगी



Tuesday, January 10, 2023

ख़ामोशी

 अगर लफ्जों में पूछोगी तो मैं अच्छा ही कहूँगा

मेरा हाल जानना है तो मेरी ख़ामोशी को पढ़के देख

                             #satishrohatgi

Tuesday, June 7, 2022

अपनापन

 कोई था जो अपनापन जताता भी था

जिसे करीब पाकर मैं मुस्कुराता भी था

आज दुश्मनी की हद तक खफा है, जो

दौड़कर मेरी बाहों में सिमट जाता भी था

                       ~satishrohatgi







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Saturday, June 4, 2022

मुकाम

 मैं जिस मुकाम की ज़ानिब उम्र भर चलता रहा

वो पैसे के रवानी में अपने ठिकाने बदलता रहा

मैं टूट चुका हूँ वो भी अब बर्बादी में जीता है

वो मुझे छलता रहा और जमाना उसे छलता रहा

                              ~सतीश रोहतगी


मुकाम=मंजिल

जानिब=तरफ


    

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समंदर



इतनी भी मुरव्वत से मेरी ओर न देखा कर
मैं ठहरा समन्दर हूँ,छलका तो मुसीबत होगी
              ~satishrohatgi

मुरव्वत=अपनापन,सौहार्द

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मैं समन्दर तो नही

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