Wednesday, June 30, 2021

शाम से सुबह तलक

 



शाम से सुबह तलक

तुझे सोचता हूँ एकटक

वहाँ तलक तू छाई है

मिले जहाँ जमीं- फ़लक


तेरे बाद दिल खिला नही

तुझसा कोई मिला नही

यादों का दरिया पास है

ख्वाबों का काफ़िला नही

जिस मोड़ पर बिछड़ी थी तू

मैं वहीं खड़ा हूँ आजतक।


शाम से सुबह तलक

तुझे सोचता हूँ एकटक।


ना सर्दियों की धुप में

ना इन गुलों के रूप में

पाता सुकून दिल मेरा

यादों के गहरे कूप में

मेरे दर्द के अफसानों से

प्याली भी अब गई छलक


शाम से सुबह तलक

तुझे सोचता हूँ एकटक


हर एक पल को नोंचकर

हरे करदूँ जख्म खरोंचकर

तब तो आओगी मुझको देखने

खुश होता हूँ ऐसा सोचकर

सौ दर्द की दवा मिले

मिले जो बस तेरी झलक


शाम से सुबह तलक

तुझे सोचता हूँ एकटक


ऐ दिल मेरे सँभल ज़रा

इस जाल से निकल ज़रा

बदल गयी वो जिस तरह

तू भी कुछ बदल ज़रा

इस किस्से पे पर्दा डाल अब

आँखों पे झुक गयी पलक


शाम से सुबह तलक

तुझे सोचता हूँ एकटक

                  ~सतीश रोहतगी

Friday, June 11, 2021

अधूरी बात

 रह जाती है अधूरी वो जरुरी बात

सोचकर कि कल कहूँगा आज नही

तैयारियां नाकाम हो जाती तेरे सामने

जैसे कि जज्बात तो हैं अल्फ़ाज नही










                                                   ~सतीश रोहतगी

Tuesday, June 1, 2021

दिल ये चाहे मेरा

 कोरोना में जीवन गंवा देने वाले लोगों के परिवारों ,अपनों का दर्द इस कविता में उतारने का प्रयास किया है।आशा है आप सबके दिलों तक पहुँच पाउँगा।

https://youtu.be/s1LkcE7WOZo


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