Saturday, August 7, 2021

मसला

 दुनिया में जो भी अहम है

            हाँ बस वही मसला नही


तभी तो देखकर ऊँचाई घर की

            कोई नींव को समझा नही


वो तो विश्वास की ठोकर से बस

             लड़खड़ा कर था गिरा


और ये दुनिया समझती है कि 

             वो वक्त पर संभला नही


                         ~सतीश रोहतगी



मसला= चर्चा का विषय

#satishrohatgipoetry

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Saturday, July 31, 2021

जब शाम ढलती है



















जब शाम ढ़लती है
             तुम्हे मैं याद करता हूँ

सितारें तंज करते हैं
चाँद भी हंसी उड़ाता है

               अँधेरे रास आते हैं
                दिया मुझको जलाता है

चमकते हुए जुगनू
कोई ताना सा कसते हैं
   
                  नींद नाराज़ रहती है
                   हम तन्हा तरसते हैं

खोया तुम्हें जबसे
खुशियाँ छोड़ दी मैंने

                     अंधेरों की तरफ अपनी
                      दुनिया मोड़  दी  मैंने

जहाँ सुनता नही कोई
वहाँ फ़रियाद करता हूँ

                         जब शाम ढ़लती है
                          तुम्हें मैं याद करता हूँ

मेरे काँधे पे सर रखके
तेरा वो खिलखिला जाना

                            मेरी हर बात पर हल्के
                             से तेरा मुस्कुरा  जाना

वो तेरा बोलते रहना
वो मेरा एकटक सुनना

                             कभी घण्टों चुप रहना
                              और बस धड़कनें सुनना

कभी अनसुना करना
कभी बिन कहे समझ लेना

                               कभी कहना इशारे से
                                कभी लिखकर बता देना

तेरी अठखेलियों की याद से
मैं दिल आबाद करता हूँ

                                 जब शाम ढ़लती है
                                 तुझे मैं याद करता हूँ।
  
                            ~सतीश रोहतगी

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Wednesday, June 30, 2021

शाम से सुबह तलक

 



शाम से सुबह तलक

तुझे सोचता हूँ एकटक

वहाँ तलक तू छाई है

मिले जहाँ जमीं- फ़लक


तेरे बाद दिल खिला नही

तुझसा कोई मिला नही

यादों का दरिया पास है

ख्वाबों का काफ़िला नही

जिस मोड़ पर बिछड़ी थी तू

मैं वहीं खड़ा हूँ आजतक।


शाम से सुबह तलक

तुझे सोचता हूँ एकटक।


ना सर्दियों की धुप में

ना इन गुलों के रूप में

पाता सुकून दिल मेरा

यादों के गहरे कूप में

मेरे दर्द के अफसानों से

प्याली भी अब गई छलक


शाम से सुबह तलक

तुझे सोचता हूँ एकटक


हर एक पल को नोंचकर

हरे करदूँ जख्म खरोंचकर

तब तो आओगी मुझको देखने

खुश होता हूँ ऐसा सोचकर

सौ दर्द की दवा मिले

मिले जो बस तेरी झलक


शाम से सुबह तलक

तुझे सोचता हूँ एकटक


ऐ दिल मेरे सँभल ज़रा

इस जाल से निकल ज़रा

बदल गयी वो जिस तरह

तू भी कुछ बदल ज़रा

इस किस्से पे पर्दा डाल अब

आँखों पे झुक गयी पलक


शाम से सुबह तलक

तुझे सोचता हूँ एकटक

                  ~सतीश रोहतगी

Friday, June 11, 2021

अधूरी बात

 रह जाती है अधूरी वो जरुरी बात

सोचकर कि कल कहूँगा आज नही

तैयारियां नाकाम हो जाती तेरे सामने

जैसे कि जज्बात तो हैं अल्फ़ाज नही










                                                   ~सतीश रोहतगी

Tuesday, June 1, 2021

दिल ये चाहे मेरा

 कोरोना में जीवन गंवा देने वाले लोगों के परिवारों ,अपनों का दर्द इस कविता में उतारने का प्रयास किया है।आशा है आप सबके दिलों तक पहुँच पाउँगा।

https://youtu.be/s1LkcE7WOZo


satishrohatgipoetry youtube chanel


Wednesday, April 28, 2021

अगली गली में







 देखकर एक बार जिसको दिनभर ख़ुशी सी रहती है

सोचने भर  से ही लबों  पर एक हंसी सी रहती है


मिलने को जिससे हर सुबह में रात भर मचलता हूँ

अगली गली में तो वो लड़की सांवली सी रहती है


हर बात में उसकी कशिश हर बात उसकी लाजवाब

मगर सबसे बढ़कर पैरहन में सादगी सी रहती है


मेरी गली से आते जाते हर बार मुड़कर देखती है

उसकी छोटी सी शरारत से हरपल बेकली सी रहती है


दो चार दिन भी वो अगर मुझको नजर न आये तो

अच्छे बुरे ख्यालों से दिल में खलबली सी रहती है


कहना है उससे बहुत कुछ हिम्मत जुटा पाता नही

वो सामने आती है तो धड़कन थमी सी रहती है


'रोहतगी' लगता है तुझको रोग वो ही हो गया

शेख ओ बिरहमन को भी जिसमें मयकशी सी रहती है।

                                  ~सतीश रोहतगी


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पैरहन=पहनावा

शेख ओ बिरहमन=मौलवी और पण्डित

Tuesday, April 13, 2021

तमन्ना के परिंदे

 





ओ तमन्ना के परिंदे सुन तुझे अब ठहर जाना चाहिए

वक़्त का अच्छा बुरा नगमा ख़ुशी से गुनगुनाना चाहिए।


ऐब-ओ-सवाब के पलड़े में न हर वक़्त खुद को तोलिये

कभी कभी तो दोस्तों के संग भी पीना पिलाना चाहिए।


वो शाब्दा आँखें ही हैं बिना मय भी सकूँ देती हैं जो

हुस्न वालों से अदब से हमेशा पेश आना चाहिए ।


देखते हुए तस्वीर तेरी अक्सर गुजरती रातें मेरी

हैं नींद की ये शर्त कि तेरा ख़्वाब आना चाहिए।

(youtubeपर "satishrohatgipoetry"पर वीडियो देखें)


इतना भी भला क्या सोचना बह जाये न पानी समय का

कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें फ़ौरन बताना चाहिए।


'रोहतगी' लाख हों मसले मगर दुनियादारी भी कोई चीज है

अचानक कहीं मिल जाएँ ग़र तो मुस्कुराना चाहिए।

                                       ~सतीश रोहतगी

Wednesday, March 3, 2021

लगता है ये हवा तेरे शहर से आई है || sad shayri || A heart broken shayri

 ताज़गी है खुश्बू है जिंदगी सी लाई है

लगता है ये हवा तेरे शहर से आई है।


मेरे बालों से यूँ गुजरी गोया उँगलियाँ हैं तेरी


मेरे बालों से यूँ गुजरी गोया उँगलियाँ हैं तेरी

और एहसास में तेरी सांसों की पारसाई है।


मैं कशमकश की नोंक पे हस्ती को लिए बैठा हूँ


मैं कशमकश की नोंक पे हस्ती को लिए बैठा हूँ

ना कहूँ तो ख़ुदकुशी कह दूं तो जगहंसाई है।


उसी के ख्वाब सजाना जो मेरा न रहा कभी


उसी के ख्वाब सजाना जो मेरा न रहा कभी

मुहब्बत मेरी अब तो नींदों की बेहयाई है।


वो था,थी ग़म में ख़ुशी अब ख़ुशी में ग़म है


वो था,थी ग़म में ख़ुशी अब ख़ुशी में ग़म है

तब सांसे तमन्ना थी अब रस्म अदाई है।


ताज़गी है खुश्बू है ज़िन्दगी सी लाई है

लगता है ये हवा तेरे शहर से आई है

Sunday, February 14, 2021

वीराना ये भी अच्छा है

 


ऐ दिल भटकना छोड़ ठिकाना ये भी अच्छा है

मतलब की महफ़िल से वीराना ये भी अच्छा है

है तन्हाई का डर तो हर तरफ आईने रख लो

खुद को बहलाने का बहाना ये भी अच्छा है

                             ~सतीश रोहतगी


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Friday, February 5, 2021

हसरत

 

तेरी रह-गुज़र में बिखर जाने की हसरत है

इन आँखों के समन्दर में उतर जाने की हसरत है

नहीं कहता तू मुझको अपनी हसरत बना के जी

मुझे तो तेरी दीवानगी में मर जाने की हसरत है।

                            ~सतीश रोहतगी

Friday, January 29, 2021

बन्द चौराहें

 यह कविता ऐसी सत्य घटना पर आधारित है जिसमे एक बूढा व्यक्ति काम की तलाश में भटक रहा है।लेकिन उसे काम नही मिलता तो उसकी क्या अवस्था है।आशा है ये मार्मिक रचना आप सब को पसन्द आएगी


किराने की दुकानों से आलू के गोदाम तक
भटकता है एक शख्स सुबह से शाम तक

जर्जर काया बोझ उठाने में असफल रहे
किन्तु उदर के ताप से रोज तन व्याकुल रहे

देखकर उसकी दशा कोई काम भी देता नही
आत्मसम्मान का धनी भीख वो लेता नही

दौड़ती गाड़ियों के बीच स्वयं से बोलता हुआ
अपने भाग्य को मन ही मन तोलता हुआ

रत्ती रत्ती स्वयं को मारने निकला है वो
कितने सहचर है किन्तु देखिये इकला है वो

मिशन सा है वो आज कुछ न कुछ अर्जित करे
स्वयं खाये और कुछ भगवान को अर्पित करे

भव्य होटल दमकती दुकाने आलिशान घरों के अहाते
अपनी भव्यता से अधिक उसकी लघुता को बताते

क्या करे कोई भी रास्ता नही दिखता
रक्त के बाजार में अब पसीना नही बिकता

पथ का पत्थर ही जाने लक्ष्यहीन होना है क्या
जब हाथ में पाई न हो तो कर्महीन होना है क्या

सहमता डरता सम्भलता आया ले आँखें सवाली
हाथ खाली जेब खाली और कदाचित पेट खाली

दो हाथ जोड़े माँगा काम उसने धरा पे बैठकर
कुछ नही है जाओ भाई लालाजी बोले ऐंठकर

आशा का खोना खोना कहो पारस का है
अनुमान से परे है जो हाल उसके अन्तस् का है

समय की गति से छला जाता है वो
निराशा का अनन्त बोझ ले चला जाता है वो

उन्नति की दमक छाया है खोखले उत्थान की
भूख तक न मिटा पाती है ये किसी इंसान की

कितनी करुण मर्मभेदी थी उसकी खामोश आहें
काश के कोई रास्ता दे देते उसे बन्द चौराहें।
                         ~सतीश रोहतगी

Sunday, January 10, 2021

हाल-ए-दिल


 


हाल-ए-दिल अब बतलाने से डरता हूँ

नाकाम रहे उस अफ़साने से डरता हूँ।

गाँवों के ये टूटे झोंपड़ और रठाने ही अच्छे

तेरे व्यस्त शहर के वीराने से डरता हूँ।

तू नही मिला तो गैरों से अय्याशी क्या

खुद की नजरों में गिर जाने से डरता हूँ।

तेरे जाने के बाद से वहशी हैं सन्नाटे

बचपन की तरहा घर में जाने से डरता हूँ।

इक इक कर खत सारे जला दिए हैं

गुजरी बातों के याद आने से डरता हूँ।

चाँद दिखेगा तो तेरा चेहरा याद आएगा

बस इसीलिए छत पर जाने से डरता हूँ।

खाब से पूछा गरीबो से नाराजी क्या

बोला आंसू बनकर बह जाने से डरता हूँ।

हाल-ए-दिल अब बतलाने से डरता हूँ।

नाकाम रहे उस अफ़साने से डरता हूँ।

                              ~सतीश रोहतगी


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मैं समन्दर तो नही

 मैं समंदर तो नहीं कि दिल में उठे हर तूफान को सह लूँ तुम जब हंसकर गैरों से मिलती हो तो मैं परेशान होता हूँ                                  ...