रह जाती है अधूरी वो जरुरी बात
सोचकर कि कल कहूँगा आज नही
तैयारियां नाकाम हो जाती तेरे सामने
जैसे कि जज्बात तो हैं अल्फ़ाज नही
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मैं समंदर तो नहीं कि दिल में उठे हर तूफान को सह लूँ तुम जब हंसकर गैरों से मिलती हो तो मैं परेशान होता हूँ ...
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१२-०६-२०२१) को 'बारिश कितनी अच्छी यार..' (चर्चा अंक- ४०९३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
शुक्रिया
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteशुक्रिया
DeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteक्यों कल पर कुछ छोड़ना ।
ReplyDeleteसुंदर सार्थक पंक्तियां।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद मैम
Deleteभावों की सुन्दर अभिव्यक्ति।
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