मैं जिस मुकाम की ज़ानिब उम्र भर चलता रहा
वो पैसे के रवानी में अपने ठिकाने बदलता रहा
मैं टूट चुका हूँ वो भी अब बर्बादी में जीता है
वो मुझे छलता रहा और जमाना उसे छलता रहा
~सतीश रोहतगी
मुकाम=मंजिल
जानिब=तरफ
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सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद सर
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