Saturday, June 4, 2022

मुकाम

 मैं जिस मुकाम की ज़ानिब उम्र भर चलता रहा

वो पैसे के रवानी में अपने ठिकाने बदलता रहा

मैं टूट चुका हूँ वो भी अब बर्बादी में जीता है

वो मुझे छलता रहा और जमाना उसे छलता रहा

                              ~सतीश रोहतगी


मुकाम=मंजिल

जानिब=तरफ


    

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