Monday, October 26, 2020

श्रृंगार रस में कैसे लिखूँ

 



तन के घट भरा स्वांस रस

रत्ती रत्ती घटता जाये

संघर्षों की तीक्ष्ण आंच में

हुआ वाष्पन उड़ता जाये।

 रण-भूमि कागज की छाती

कलम नही,ये है तलवार

बन्धन-उन्मुक्तता का द्वंद्व

पर्वत से भारी हैं उदगार।

भय लगता है हाथ लगाते

जीवन के ओघड़ घावों को

मुखड़े पर मुस्कान सजाये

अन्तस् में क्रंदित भावों को।

सबको सबका जीवन आनंदित

क्षितिज सम  देता दिखलाई

जीवन बीता आस पांगते

हाथ आई कड़वी सच्चाई।

कानों में ढ़ोल जाड़ों में अग्नि

जैसे दूर - दूर से भाती है

छोटी सी मुस्कान के पीछे

अंतहीन रुदन की थाती है।

इस जग का सञ्चालन सूत्र

इसे समझना बहुत जटिल है

असत के मग में फूल बिछाए

सच का पथ सदा कंटिल  है।

उलटी प्रवाहित इस धारा में

सबके सुख की नौका डाँवाडौल

करुणा से रंजित आह्वानों में

न सूझे श्रृंगार के सुंदर बोल।

भय लगता है राजपथों पर

जाते हैं मानव या कि यन्त्र चले

जी चाहे दुनिया नई ढूंढ लूँ

या हमभी सुधबुध खो अभिमंत्र चलें।

या हमभी सुधबुध खो अभिमंत्र चलें।

                         ~सतीश रोहतगी

संकेत-

बन्धन=प्रतिबन्ध,

उन्मुक्तता=आजादी,फक्कड़पन

द्वंद्व=संघर्ष,खींचतान

उदगार=भावनाएं

अन्तस्=मन के भीतर

थाती=विरासत

करुणा से रंजित आह्वान=दया भाव लिए सहायता के लिए पुकारते

अभिमंत्र चलें=जैसे सम्मोहन में व्यक्ति को कुछ सही गलत नही पता होता उसी प्रकार चलें


#shayri

#shayari

#कविता

#हिंदी कविता

#SatishRohatgi





21 comments:

  1. सादर नमस्कार ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (27-10-2020 ) को "तमसो मा ज्योतिर्गमय "(चर्चा अंक- 3867) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी अवश्य

      बहुत बहुत आभार

      Delete
  2. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  3. सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete

  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 28 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  5. जी अवश्य

    धन्यवाद

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर कविता है

    ReplyDelete
    Replies
    1. उत्साह वर्धन के लिए आभार आपका

      Delete
  7. वाह!लाजवाब सृजन अनुज सराहनीय लेखनी है आपकी.
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. उत्साह वर्धन के इन सुंदर शब्दों के लिए आपका हृदय से आभार

      Delete
  8. व्वाहहहहहह
    शानदार...
    सादर

    ReplyDelete
  9. करुणा से रंजित आह्वानों में
    न सूझे श्रृंगार के सुंदर बोल।
    भय लगता है राजपथों पर
    जाते हैं मानव या कि यन्त्र चले
    .. बहुत सही ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत धन्यवाद
      शुक्रिया

      Delete
  10. अति सुन्दर कृति । आभार ।

    ReplyDelete
  11. भय लगता है हाथ लगाते

    जीवन के ओघड़ घावों को

    क्या बात अति सुंदर भाव को शब्दों के माध्यम से बहुत ही सलीके से उकेरा है आपने

    ReplyDelete

Featured post

मैं समन्दर तो नही

 मैं समंदर तो नहीं कि दिल में उठे हर तूफान को सह लूँ तुम जब हंसकर गैरों से मिलती हो तो मैं परेशान होता हूँ                                  ...