तन के घट भरा स्वांस रस
रत्ती रत्ती घटता जाये
संघर्षों की तीक्ष्ण आंच में
हुआ वाष्पन उड़ता जाये।
रण-भूमि कागज की छाती
कलम नही,ये है तलवार
बन्धन-उन्मुक्तता का द्वंद्व
पर्वत से भारी हैं उदगार।
भय लगता है हाथ लगाते
जीवन के ओघड़ घावों को
मुखड़े पर मुस्कान सजाये
अन्तस् में क्रंदित भावों को।
सबको सबका जीवन आनंदित
क्षितिज सम देता दिखलाई
जीवन बीता आस पांगते
हाथ आई कड़वी सच्चाई।
कानों में ढ़ोल जाड़ों में अग्नि
जैसे दूर - दूर से भाती है
छोटी सी मुस्कान के पीछे
अंतहीन रुदन की थाती है।
इस जग का सञ्चालन सूत्र
इसे समझना बहुत जटिल है
असत के मग में फूल बिछाए
सच का पथ सदा कंटिल है।
उलटी प्रवाहित इस धारा में
सबके सुख की नौका डाँवाडौल
करुणा से रंजित आह्वानों में
न सूझे श्रृंगार के सुंदर बोल।
भय लगता है राजपथों पर
जाते हैं मानव या कि यन्त्र चले
जी चाहे दुनिया नई ढूंढ लूँ
या हमभी सुधबुध खो अभिमंत्र चलें।
या हमभी सुधबुध खो अभिमंत्र चलें।
~सतीश रोहतगी
संकेत-
बन्धन=प्रतिबन्ध,
उन्मुक्तता=आजादी,फक्कड़पन
द्वंद्व=संघर्ष,खींचतान
उदगार=भावनाएं
अन्तस्=मन के भीतर
थाती=विरासत
करुणा से रंजित आह्वान=दया भाव लिए सहायता के लिए पुकारते
अभिमंत्र चलें=जैसे सम्मोहन में व्यक्ति को कुछ सही गलत नही पता होता उसी प्रकार चलें
#shayri
#shayari
#कविता
#हिंदी कविता
#SatishRohatgi
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (27-10-2020 ) को "तमसो मा ज्योतिर्गमय "(चर्चा अंक- 3867) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
जी अवश्य
Deleteबहुत बहुत आभार
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteDhanyawad ji
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ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 28 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जी अवश्य
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत सुन्दर कविता है
ReplyDeleteउत्साह वर्धन के लिए आभार आपका
Deleteसुन्दर सृजन।
ReplyDeleteधन्यवाद महोदय
Deleteवाह!लाजवाब सृजन अनुज सराहनीय लेखनी है आपकी.
ReplyDeleteसादर
उत्साह वर्धन के इन सुंदर शब्दों के लिए आपका हृदय से आभार
Deleteव्वाहहहहहह
ReplyDeleteशानदार...
सादर
धन्यवाद
Deleteकरुणा से रंजित आह्वानों में
ReplyDeleteन सूझे श्रृंगार के सुंदर बोल।
भय लगता है राजपथों पर
जाते हैं मानव या कि यन्त्र चले
.. बहुत सही ...
बहुत धन्यवाद
Deleteशुक्रिया
अति सुन्दर कृति । आभार ।
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteभय लगता है हाथ लगाते
ReplyDeleteजीवन के ओघड़ घावों को
क्या बात अति सुंदर भाव को शब्दों के माध्यम से बहुत ही सलीके से उकेरा है आपने
बहुत आभार
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