Tuesday, November 17, 2020

प्यासी चिड़िया-बालकविता

 



प्यास से व्याकुल चिड़िया रानी

दूर दूर तक ढूंढें पानी

जंगल जंगल और डगर डगर

जल न आये कहीं नजर

उड़कर पंहुची नगर एक

हरषाई जल का पात्र देख

एक मकान की छत पर जल

जीवनरक्षक अमृत सा निर्मल

एक कबूतर करता जल पान

पानी पी चिड़िया के बचे प्राण

एक प्रश्न उसके मन में आया

ये जल इस छत पर कैसे आया?

गर्मी में सूखे सूखे ताल तलैया

पीनेको  बूँद बूँद टोटा है भैया

कबूतर ने तब जल की बात बताई

तभी नन्ही सी गुड़िया छत पर आई

देखो चिड़िया ये है अपनी मीना रानी

रोज हमारे लिए यही,कुंडे में भर जाती पानी

बच्चों तुम भी कर लो यह संकल्प अटल

चिड़ियों के लिए छत पर रखना है जल

                            ~सतीश रोहतगी

#शायरी

#कविता

#सतीश_रोहतगी

Sunday, November 8, 2020

चुप रहिये




कुछ ऐसी वक्त की नजाकत है ज़रा चुप रहिये

सेक्युलरिज्म की सियासत है ज़रा चुप रहिये।

अफजल पे सरे रात जो खुल जाया करती है

अर्नब पे बन्द वो अदालत है ज़रा चुप रहिये।

कहने को तो हम भी खरा जवाब दे देते

गर्दिश में अभी किस्मत है ज़रा चुप रहिये।

मासूमों के सीने पे बम फूटे तो कोई बात नही

उन्हें पटाखों से शिकायत है ज़रा चुप रहिये।

सड़कों पे बिखरे लहू मजहब के नाम पे मगर

पिचकारी के रंगों से नफरत है ज़रा चुप रहिये।

थाली में चिकन हाथ में प्याली शराब की

दबंगो की ये जेल में हालत है ज़रा चुप रहिये।

सदियों से सच घायल है इंसानियत लहूलुहान

बस फूलती फलती वहशत है ज़रा चुप रहिये।

कुछ ऐसी वक्त की नज़ाकत है ज़रा चुप रहिये

सेक्युलरिज्म की सियासत है ज़रा चुप रहिये।

                                   ~सतीश रोहतगी


#शायरी

#shayri

#shayari

#कविता

#satishrohatgi




Featured post

अमावस

 आज इतनी पी लूँ कि अहसास ए हवस ना रहे काश मर जाऊँ कि कोई ख्वाहिश तो बेबस ना रहे कब तलक करे इंतज़ार कोई घमण्डी चाँद का जला दी अपनी ही एक ग़ज़ल,घ...