व्यक्ति की उस मानसिक दशा का वर्णन है जब वह समाज के विभिन्न पहलुओं में उपेक्षा का शिकार होकर सच्चाई और अच्छाई के मार्ग को छोड़ने और न छोड़ने की उलझन से गुजरता है।आप जितना गहराई से समझने का प्रयास करेंगे उतना ही इस कविता की सार्थकता और भाव को अनुभव करेंगे ऐसा मेरा विश्वास है।)
जब अचेतन पड़ी
आत्मसम्मान की मही
सामजिक भेद की फाली से कुरेदी जाये
उपेक्षाओं के थपेड़ो
से भुरभुराकर नियति
हृदय में प्रतिशोध के बीज बोती जाए
जलते अंगारों से वे बीज
प्रतिकार से सिंचित अहंकार से सेवित
नरसुलभ मूल्यों के वक्ष चीर
करते दुर्भावनाओं के अंकुर सृजित
तो भय लगता है
हाँ स्वयं से भय लगता है।
निरपराध होकर भी
जीवन भर का दण्ड
पग पग चलना भी कठिन हो जाये
दयाभाव से भरे लोगों के नयन
व्यंग्य करें और स्वयं से सहे न जाएँ
तब लोकेशनाओं का विशाल वृक्ष
विषैली दग्ध छाँव बरसाता
प्रेम के अंकुर रिश्तों की दूब को दहता
दम्भ के ज्वालामुखी का लावा
जीवन के पल पल पर छा जाता
तो भय लगता है
हाँ स्वयं से भय लगता है।
प्रेम से परिपूर्ण मन की गागर
जब उनके मूक व्यंग्य से फूटे
शब्द-शब्द सजा लिखी जाने वाली कथा
सिसक-सिसक का विरह में कलम से छूटे
जब अट्टालिकाओं पर खड़ा हमारा प्रेम
ऊँची बोलियों की हाट में सजा दिखता हो
किसी का कंकड़ भी मोती कहा जाये
और हमारा कनकमन मिट्टी सा बिकता हो
तो भय लगता है
हाँ स्वयं से भय लगता है।
प्रत्युतर नही देने वाले हम मूर्ख नही
हम बस नातों की सजीवता चाहते हैं
हमारे सहयोग को अपनी चतुरता न समझो
हम जैसे लोग बस यूं ही काम आ जाते हैं
भय लगता है कि कहीं ऐसा न हो
हमारी सहज सज्जनता की उपेक्षा करके
येन केन प्रकारेण ऊपर चढ़ते लोग
तोड़ न दें उन बेड़ियों को ज्यादा कसा करके
बांधे रखती जो मनुज के भीतर के दानव को
धन के चुम्बक से खिंच आते प्रेम,मान व रिश्ते
बहकाने लगते हैं सदगुणी मानव को
कहीं ऐसा न हो जाए कि जग की
भौतिकता व् स्वार्थ की रौ में बहकर
और समाज के सौतेले व्यवहार से खिन्न होकर
खो न दूं अपनी संवेदनाएं और भावुकता
बस स्वयं से इसी बात का भय लगता है
~सतीश रोहतगी
संकेत
मही=भूमि
नियति=भाग्य,विधाता
प्रतिकार=विरोध,एक प्रकार से जवाब देने की बात
नर सुलभ मूल्य=मानव के सद्गुण जैसे प्रेम,दया,विनम्रता आदि
लोकेशना=संसार में प्रसिद्द होने या औरों से ख़ास दिखने की इच्छा
दम्भ=ईगो,
मूक व्यंग्य=ऐसा ताना जो केवल आँखों या मुस्कान से हो और बिना बोले किया जाए
कनकमन=सोने जैसा मन
येन केन प्रकारेण=अच्छा बुरा कोई भी रास्ता अपनाकर
Ati sundar
ReplyDeleteसब समझने वाले पे निर्भर करता है सर
Deleteबहुत सुंदर सशक्त रचना
ReplyDeleteजी
धन्यवाद
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २५ दिसंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी धन्यवाद
Deleteसुन्दर थोड़े फ़ोण्ट छोटे कर लें तो सुविधा हो।
ReplyDeleteजी सर
Deleteकिया है।अब आपको ज्यादा बेहतर लगे ऐसी आशा है।
धन्यवाद