Monday, August 31, 2020

पलकें


 नरगिसी आँखों पर 

सजती दराज पलकें,

नूर के गोहर पे

किरन सी रंगबाज पलकें,

मिली नजरों की दहक कहीं

सह न पाएं नातवानी ए सब्र




शिद्दत से झुककर करती हैं

इश्क का लिहाज पलकें,

दर्द ए मरिज ए शौक 

इसी तौर ही कम हो

उठे तो गोया कर जावें

दिल का इलाज पलकें,

असर दयारे जहन में यूँ

हरकते मिजगाँ का है

जिया ओ तीरगी से सालती 

बर्क मिजाज पलकें,

चारागर के पोश में वो 

आँखें नशाफ़रोश थीं

एक और ऐब दे गयी हमें

आपकी जालसाज पलकें,

                  ~सतीश रोहतगी


संकेत

दराज पलकें=लम्बी लम्बी पलकें

नूर के गोहर=प्रकाश के मोती

दहक=जलन

नातवानी ए सब्र=सब्र की कमजोरी

लिहाज=शर्म ,हया

दर्द ए मरीज ए शौक=प्रेम के रोगी की पीड़ा

तौर=तरीके से

दयार ए जहन=मन के क्षेत्र

हरकते मिजगाँ=पलकों के इशारे

जिया ओ तीरगी=रौशनी और अँधेरा

सालती=बैचेन करती

बर्क मिजाज=आसमानी बिजली जैसे स्वभाव वाली

चारागर=डॉक्टर

पोश में=वेश में

नशफरोश=नशा बेचने वाली


#shayri

#SatishRohatgi

#स्वरांजलि



चित्र--साभार गूगल से

7 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 28 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. जी अवश्य
    इस ग़ज़ल को सम्मान देने के लिए आपका आभार

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