देखकर एक बार जिसको दिनभर ख़ुशी सी रहती है
सोचने भर से ही लबों पर एक हंसी सी रहती है
मिलने को जिससे हर सुबह में रात भर मचलता हूँ
अगली गली में तो वो लड़की सांवली सी रहती है
हर बात में उसकी कशिश हर बात उसकी लाजवाब
मगर सबसे बढ़कर पैरहन में सादगी सी रहती है
मेरी गली से आते जाते हर बार मुड़कर देखती है
उसकी छोटी सी शरारत से हरपल बेकली सी रहती है
दो चार दिन भी वो अगर मुझको नजर न आये तो
अच्छे बुरे ख्यालों से दिल में खलबली सी रहती है
कहना है उससे बहुत कुछ हिम्मत जुटा पाता नही
वो सामने आती है तो धड़कन थमी सी रहती है
'रोहतगी' लगता है तुझको रोग वो ही हो गया
शेख ओ बिरहमन को भी जिसमें मयकशी सी रहती है।
~सतीश रोहतगी
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पैरहन=पहनावा
शेख ओ बिरहमन=मौलवी और पण्डित
वाह बहुत बढ़िया।
ReplyDeletethank you
DeleteKhub bahut khub
ReplyDeletethank you
Deleteबहुत सुन्दर
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