Wednesday, April 28, 2021

अगली गली में







 देखकर एक बार जिसको दिनभर ख़ुशी सी रहती है

सोचने भर  से ही लबों  पर एक हंसी सी रहती है


मिलने को जिससे हर सुबह में रात भर मचलता हूँ

अगली गली में तो वो लड़की सांवली सी रहती है


हर बात में उसकी कशिश हर बात उसकी लाजवाब

मगर सबसे बढ़कर पैरहन में सादगी सी रहती है


मेरी गली से आते जाते हर बार मुड़कर देखती है

उसकी छोटी सी शरारत से हरपल बेकली सी रहती है


दो चार दिन भी वो अगर मुझको नजर न आये तो

अच्छे बुरे ख्यालों से दिल में खलबली सी रहती है


कहना है उससे बहुत कुछ हिम्मत जुटा पाता नही

वो सामने आती है तो धड़कन थमी सी रहती है


'रोहतगी' लगता है तुझको रोग वो ही हो गया

शेख ओ बिरहमन को भी जिसमें मयकशी सी रहती है।

                                  ~सतीश रोहतगी


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पैरहन=पहनावा

शेख ओ बिरहमन=मौलवी और पण्डित

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