दुनिया में जो भी अहम है
हाँ बस वही मसला नही
तभी तो देखकर ऊँचाई घर की
कोई नींव को समझा नही
वो तो विश्वास की ठोकर से बस
लड़खड़ा कर था गिरा
और ये दुनिया समझती है कि
वो वक्त पर संभला नही
~सतीश रोहतगी
मसला= चर्चा का विषय
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मैं समंदर तो नहीं कि दिल में उठे हर तूफान को सह लूँ तुम जब हंसकर गैरों से मिलती हो तो मैं परेशान होता हूँ ...
वाह🌼♥️
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (०९-०८-२०२१) को
"कृष्ण सँवारो काज" (चर्चा अंक-४१५१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
कृपया बुधवार को सोमवार पढ़े।
Deleteसादर
सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeletethanks to all
ReplyDeleteवाह! अद्भुत ।
ReplyDeleteसटीक कहा आपने , शानदार।
Bahut achhe
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