जब शाम ढ़लती है
तुम्हे मैं याद करता हूँ
सितारें तंज करते हैं
चाँद भी हंसी उड़ाता है
अँधेरे रास आते हैं
दिया मुझको जलाता है
चमकते हुए जुगनू
कोई ताना सा कसते हैं
नींद नाराज़ रहती है
हम तन्हा तरसते हैं
खोया तुम्हें जबसे
खुशियाँ छोड़ दी मैंने
अंधेरों की तरफ अपनी
दुनिया मोड़ दी मैंने
जहाँ सुनता नही कोई
वहाँ फ़रियाद करता हूँ
जब शाम ढ़लती है
तुम्हें मैं याद करता हूँ
मेरे काँधे पे सर रखके
तेरा वो खिलखिला जाना
मेरी हर बात पर हल्के
से तेरा मुस्कुरा जाना
वो तेरा बोलते रहना
वो मेरा एकटक सुनना
कभी घण्टों चुप रहना
और बस धड़कनें सुनना
कभी अनसुना करना
कभी बिन कहे समझ लेना
कभी कहना इशारे से
कभी लिखकर बता देना
तेरी अठखेलियों की याद से
मैं दिल आबाद करता हूँ
जब शाम ढ़लती है
तुझे मैं याद करता हूँ।
~सतीश रोहतगी
#satishrohatgipoetry
#satishrohatgi
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत अच्छे भाई बहुत अच्छे
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