रेत पर लिखा जो नाम है,जीने का सहारा है
हकीकत में गैर का है वो,ख़ाबों में हमारा है
उसके सिवा पहलु में कोई चेहरा नही था
याद आता है इस शहर में कोई मेरा नही था
पर आज किसी साये ने,पीछे से पुकारा है
कोई हमसा ही दीवाना है,या वक्त का मारा है
कई बार हमारे पास से गुजरी है जिंदगी
एक बार मुस्करा के हरदम गयी चली
मोती कांच के टुकड़े थे,जिन्हें पलकों से सँवारा है
जो मेरी आँख की सुर्खी है,ये दर्द तुम्हारा है
तन्हाई में देखता हूँ अपनी लकीरों को
और रह-ए-जिंदगी में चलते राहगीरों को
एक जाल है रस्तों का उलझन में गुजारा है
कोई हार के जीता है कोई जीत के हारा है
दुनिया के रुख को दोस्तों समझ सके न हम
किस बात पे हैरां हो कब करने लगे सितम
लोगों की सवाली आँखों को,हँस हँस के गँवारा है
कुछ यूं कर हमने जिंदगी का,कुछ कर्ज उतारा है
रेत पे लिखा जो नाम है,जीने का सहारा है
हकीकत में गैर का है वो,ख़ाबों में हमारा है
~सतीश रोहतगी
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wah wah ...osm
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteThank you very much.
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