दौर-ए-महफ़िल इस बात ,पे ग़ौर किया कीजे
ज्यादा खुलकर भी न,हुजूर लोगों से मिला कीजे।
क्या पता कब कौन कैसे,दुश्मनी हासिल करे
दोस्ती में भी कुछ फाँसले,दरम्यान रखा कीजे।
कुछ पहलू आदमी के,दबकर ही वज़ा रहते हैं
हमराजों से भी न हर एक,राज बयाँ कीजे।
चले जाने पे बहारों के,दिल रह जाये न खाली
रंजो-गम का भी इक कोना,सीने में रखा कीजे।
कौन पूछेगा तुझे,गैर की तिश्नगी में मिटने के बाद
'रोहतगी' बरसो मगर,कुछ बचाकर भी रखा कीजे।
दौर-ए-महफ़िल इस बात,पे ग़ौर किया कीजे
ज्यादा खुलकर भी न ,हुजूर लोगों से मिला कीजे।
~सतीश रोहतगी
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#शायरी
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#SatishRohatgi
संकेत
दौर ए महफ़िल=दावत या पार्टी में
वज़ा=उचित,ठीक
तिश्नगी=प्यास
दौर-ए-महफ़िल इस बात ,पे ग़ौर किया कीजे
ReplyDeleteज्यादा खुलकर भी न,हुजूर लोगों से मिला कीजे।
क्या पता कब कौन कैसे,दुश्मनी हासिल करे
दोस्ती में भी कुछ फाँसले,दरम्यान रखा कीजे।,,,,...बहुत सुन्दर सच को वंया करती रचना । शुभकामनाएँ
धन्यवाद जी
Deleteधन्यवाद अनुराधा जी
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२४-१०-२०२०) को 'स्नेह-रूपी जल' (चर्चा अंक- ३८६४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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अनीता सैनी
जी अवश्य
Deleteधन्यवाद
सामायिक विषय पर शानदार ग़ज़ल ।
ReplyDeleteउम्दा/बेहतरीन।
बहुत बहुत शुक्रिया इस उत्साहवर्धन के लिए
Deleteखतरनाक लव स्टोरी शायरी
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