लब-ए-शाम पे मुस्कुराहट है
आ रहे हैं वो,
धड़कनों में थरथराहट है
आ रहे हैं वो।
वही खुशबु लिए आगोश में
सबा रक्स करती आ गयी
शजरे अँगनाई में सरसराहट है
आ रहे हैं वो।
वीरां ओ बन्द कमरों से
पर्दा-ए-उफ़क़ हट रहा
इंतज़ार में बेकल चोखट है
आ रहे हैं वो।
उसकी आँखों से पिएंगे हम
आज न जाम रूबरू लाओ
न साकी न मय की जरूरत है
आ रहे हैं वो।
धड़कता दिल तेज सांसे और
आहें बेताब सी उम्मीद की
हर आहट में वो ही आहट है
आ रहे हैं वो।
लब-ए- शाम पे मुस्कुराहट है
आ रहे हैं वो।
~सतीश रोहतगी
संकेत
लब-ए-शाम=शाम के होठ
आगोश=आलिंगन
सबा=हवा
रक्स=नृत्य
शजरे अँगनाई=आँगन में लगा पेड़
पर्दा-इ-उफ़क़=अँधेरे की चादर
बेकल=व्याकुल
मय=शराब
#shayri
#Kavita
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#कविता
#ग़ज़ल
#SatishRohatgi
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१७-१०-२०२०) को 'नागफनी के फूल' (चर्चा अंक-३८५७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
जी अवश्य
Deleteधन्यवाद
वाह
ReplyDeleteधन्यवाद महोदय
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ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
18/10/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
जी आभार
Deleteमुझे सम्मिलित होने में ख़ुशी होगी
जी धन्यवाद
ReplyDeleteमुझे सम्मिलित होने में ख़ुशी होगी
वाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन।
धन्यवाद sudha devrani जी
Deleteकहते हैं चित्र की सुंदरता देखने वालों की नजर में होती है उसी प्रकार काव्य की सुंदरता पढ़ने वाले की समझ और भावों की परख में छिपी होती है।
इसलिए एक बार पुनः आभार
वाह। बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteधन्यवाद शिवम् कुमार पाण्डेय जी
Deleteबहुत सुंदर रचना ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद मधुलिका जी
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